कोलकाता का ब्रिगेड परेड ग्राउंड अपने अंदर लंबा इतिहास समेटे हुए है। इसने बंगाल के साथ-साथ देश के इतिहास को बदलते देखा है। ब्रिगेड परेड ग्राउंड में पहली राजनीतिक रैली 1919 में हुई थी। ब्रिटिश शासन का अंत हुआ तो यह किला भारतीय सेना के कब्जे में आ गया। अब यहां सेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय है और ब्रिगेड परेड ग्राउंड सरकारी संपत्ति।
अंग्रेजों ने किया था इस मैदान का निर्माण
1857 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद अंग्रेज बहादुर बंगाल के मालिक बन गए। मालिक आए तो महल भी बना। नाम रखा गया फोर्ट विलियम। इंग्लैंड में विलियम बाबू विलियम सीरीज के तीसरे राजा थे। इस किले में राजा खुद नहीं रहते थे बल्कि उनकी फौज रहती थी। अब फौज है तो परेड भी होगी इसलिए किले के सामने एक मैदान बनाकर उसका नाम रख दिया ब्रिगेड परेड ग्राउंड। ब्रिटिश शासन का अंत हुआ तो यह किला भारतीय सेना के कब्जे में आ गया। अब यहां सेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय है और ब्रिगेड परेड ग्राउंड सरकारी संपत्ति।
ब्रिगेड परेड ग्राउंड में 1919 में हुई थी पहली राजनीतिक रैली
ब्रिगेड परेड ग्राउंड में पहली राजनीतिक रैली 1919 में हुई थी। चित्तरंजन दास और दूसरे स्वतंत्रता संग्रामी रौलट एक्ट के विरोध में इस मैदान में जुटे। ऑक्टरलोनी स्मारक के पास इन क्रांतिवीरों ने बैठक की। ऑक्टरलोनी स्मारक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी के याद में बनवाया गया था। ऑक्टरलोनी ने 1804 में हुए एंग्लो-नेपाली युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व किया था। अब इस स्मारक को शहीद मीनार कहा जाता है। इस विशाल ग्राउंड का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सकता है, ये गुण सबसे पहले पहचाना वाममोर्चा ने।
29 जनवरी, 1955 को इस मैदान पर सोवियत प्रीमियर निकोल एलेक्जेंड्रोविच और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पहले सचिव ख्रु्श्चेव का स्वागत हुआ। स्वागत करने वाले थे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उस दौर में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र रॉय। 6 फरवरी, 1972 को इस मैदान पर एक और रैली हुई, जिसमें 10 लाख लोग जुटे। मंच पर थे बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा। बंग बंधु मुजीबुर रहमान ने नारा दिया था-‘जय भारत-जय बांग्ला।’ 1977 में केंद्र और पश्चिम बंगाल, दोनों जगहों पर कांग्रेस की हार हुई। बंगाल में वामदल सत्ता में आए। 1984 में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली हुई।
ज्योति बसु, एनटी रामाराव, रामकृष्ण हेगड़े, फारुक अब्दुल्ला, चंद्र शेखर और इएमएस नंबूदरी पाद इस रैली में शामिल हुए। इस रैली के साढ़े चार साल बाद देश में सियासी भूचाल आया। वीपी सिंह ने राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स घोटाले का आरोप लगाकर इस्तीफा दे दिया और जनमोर्चा का चेहरा बनकर उपचुनाव में इलाहाबाद से बड़ी जीत हासिल की। इस मोर्चे को मुकाबले में बनाए रखने के लिए वीपी सिंह ने दूसरे नेताओं के साथ परेड ब्रिगेड ग्राउंड में बड़ी रैली की।
वह रैली राजनीतिक समभाव की मिसाल थी क्योंकि सत्ता के खिलाफ विरोधी विचारधाराओं का मेल हो रहा था। मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीज, मधु दंडवते, वीपी सिंह और ज्योति बसु मौजूद थे। 1980 और 90 के मध्य में बंगाल में ममता बनर्जी का राजनीतिक कद क्षितिज से क्षत्रप की ओर बढ़ रहा था। अब तक ममता का मिलन बंगाल के तृणमूल और माटी-मानुष से नहीं हुआ था. उनके किरदार की पहचान कांग्रेस थी। 25 नवंबर, 1992 को ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर एक रैली हुई। रैली की मुख्य संयोजक ममता थीं। कांग्रेस ने माकपा के खिलाफ ममता को चेहरा बनाया। ममता बंगाल में वामदलों की काल बन गईं।